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Name (English):
DR AKHILESH SRIVASTAVA
Name (Hindi):
डॉ अखिलेश श्रीवास्तव
Occupation:
Public Health Professional, Writer, Poet
Education:
Master of Public Health( Community Medicine), Clinical Psychologist , Doctorate in Public health
Address:
Indira Nagar Lucknow
City:
lucknow
Pincode:
226016
About:
जुलाई 1972 की उस सौम्य सुबह में जन्मा, जब लखनऊ की हवा में तहज़ीब, गर्मजोशी और साहित्य की महक घुली रहती थी। वही शहर, जिसने मुझे भाषा दी, संस्कार दिए और जीवन को देखने की दृष्टि दी। मेरे पिता—स्वर्गीय श्री विद्या सागर श्रीवास्तव ‘नीरस’ मेरी पहली प्रेरणा थे। उनसे मैंने जाना कि शब्द केवल लिखे नहीं जाते, जिए भी जाते हैं। उनके लिखे “बिखरे मोती” ने मेरे भीतर संवेदना का पहला बीज बोया, जो समय के साथ एक गहरी जड़ें जमाने वाले वृक्ष में बदलता गया।
बचपन से ही मनुष्य को समझने की जिज्ञासा मेरे भीतर थी, उसके शरीर की भाषा भी, उसके मन की मौन पीड़ा भी। पढ़ाई ने मुझे Public Health और Community Medicine की ओर खींचा, और फिर मानव मन को समझने की इच्छा ने मुझे Clinical Psychology तक पहुँचा दिया।
मेरी शिक्षा और मेरा पेशा—दोनों ने मिलकर मेरे भीतर एक ऐसा दृष्टिकोण गढ़ा, जिसे मैं आज अपने लेखन में धारण करता हूँ।
पिछले तीन दशकों से मैं सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़ा हूँ। इस दौरान मैंने गाँवों की धूलभरी पगडंडियों से लेकर शहरों के व्यस्त अस्पतालों तक, जीवन को उसके सबसे वास्तविक रूपों में देखा है। मैंने सीखा कि बीमारी सिर्फ शारीरिक नहीं होती—वह सामाजिक भी होती है, मानसिक भी, और कभी-कभी तो विरासत में मिली असमानताओं की परछाई भी।
इन्हीं अनुभवों ने मुझे सिखाया कि समाज का असली विकास वहाँ मापा जाता है जहाँ अंतिम पंक्ति का व्यक्ति भी सम्मान और सुरक्षा में जी सके। लेकिन इस समूची यात्रा में, एक चीज़ मेरे भीतर हमेशा जीवित रही—लेखन। मेरे लिए लिखना कोई शौक नहीं, बल्कि आत्मा की एक आदिम पुकार है। वह वह जगह है जहाँ मैं स्वयं को सबसे अधिक ईमानदारी से देख पाता हूँ। परिवार मेरे जीवन की सबसे सुन्दर धुरी है। मैं मानता हूँ कि जो व्यक्ति परिवार को साथ लेकर चल सकता है, वही समाज को भी कुछ देने योग्य बनता है।
मेरी कविताएँ, मेरे लेख, मेरे विचार—ये सब मेरे पेशेवर अनुभवों और जीवन के उतार-चढ़ाव से जन्मे हैं।
कभी शब्दों में समाज की व्यथा उतर आती है, कभी मन की ऊहापोह, कभी आशा की रोशनी, और कभी किसी अनचीन्ही पीड़ा की कच्ची सच्चाई।
मेरे लेखन में मेरे पिता की छाया है, मेरे पेशे की कठोर वास्तविकताएँ हैं, मेरे अध्ययन की गहराई है, और मेरे भीतर बैठा एक साधारण मनुष्य—जो मनुष्य को समझना चाहता है।
परिवार मेरे जीवन की सबसे सुन्दर धुरी है। मैं मानता हूँ कि जो व्यक्ति परिवार को साथ लेकर चल सकता है, वही समाज को भी कुछ देने योग्य बनता है।
परिवार ने मुझे संतुलन दिया, संवेदना दी, और वह शांति दी, जिसकी छाया में मेरी लेखनी खिल सकी।
समय के साथ मैंने जाना कि विज्ञान और साहित्य दो अलग दिशाएँ नहीं, बल्कि मनुष्य को समझने की दो आँखें हैं। एक आँख तर्क देती है, दूसरी करुणा। एक सुधार का मार्ग दिखाती है, दूसरी मन का बोझ हल्का करती है। मैं सौभाग्यशाली हूँ कि अपने जीवन में इन दोनों को साथ लेकर चल सका।
मैं लिखता हूँ क्योंकि शब्दों में वह शक्ति है, जो घावों को भी छू ले और जीवन को भी।
मैं लिखता हूँ क्योंकि समाज के उन मौन हिस्सों को आवाज़ देना ज़रूरी है जो अक्सर सुनाई नहीं देते।
और मैं लिखता रहूँगा— क्योंकि मेरे पिता से मिली यह विरासत, मेरी आत्मा की यह पुकार, और मेरे अनुभवों की यह आग मुझे रुकने नहीं देती।
यदि मेरे शब्दों से किसी एक मनुष्य को भी दिशा मिले, किसी एक हृदय को भी स्पर्श मिले, तो मैं मानूँगा कि मेरी यात्रा सार्थक है।
Hobbies & Interests:
Poetry, Pottery ,Traveling, knowledge sharing
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