सोलह की उम्र का अज़ब तराना था
ओंठो पर गीत, दिलों में फ़साना था
उम्र बीस में फिर बदला फ़साना
क़िताबों ने दिया इक अलग नज़राना
पच्चीस पर पहुँचे तो अलग ही महक थी
आसमाँ को धरती पर लाने की ललक थी
तीस -चालीस की अज़ब कहानी थी
कांधे पर बोझ,काम की परेशानी थी
पचास पार का एक अलग जुनून है
परिवार की फ़िक्र है पर काम से सूकून है।