वह हँसती है,
तो लगता है जैसे
किसी पुराने दरवाज़े की दरार से
धूप का एक सुनहरा कतरा
चुपके से कमरे में उतर आया हो।
मैं उस रोशनी को
हथेलियों में पकड़ना चाहता हूँ,
पर वह फिसल जाती है—
बिलकुल उसकी यादों की तरह।
कभी-कभी वह चुप रहती है—
इतनी चुप…
कि उसके शब्दों की राख में
मैं अपनी साँसों तक को
धीमे-धीमे जलते हुए महसूस करता हूँ।
वह जब आँखें झुका लेती है,
तो लगता है जैसे कोई
अपनी रात को तह करके
आस्तीन में छुपा रहा हो।
उसका ग़म कहीं दूर का नहीं,
मेरी छाती के भीतर ही
धीरे-धीरे पनपता है।
मैंने देखा है—
उसकी मुस्कान
कभी किसी पत्ते पर गिरती ओस जैसी होती है,
और कभी किसी पुराने खत की तरह
लिफ़ाफ़े में बंद—
जिसे खुलने में वक़्त लगता है।
उसके ग़म की भी आवाज़ होती है,
बहुत धीमी,
जैसे किसी रात अचानक
खिड़की की जाली से
हवा सरक कर गुज़र जाए।
मैं सुन लेता हूँ।
मैं हमेशा सुन लेता हूँ।
रिश्ता हमारा
शब्दों में कम,
खामोशियों में ज़्यादा लिखा गया है।
वह अपनी खुशी मुझे देती नहीं,
बस रख देती है…
और उसका ग़म—
मैं हर बार
उसके कंधे से उठाकर
अपने दिल के पास रख लेता हूँ।
कभी-कभी सोचता हूँ—
ज़िन्दगी क्या सिर्फ़ इतनी‐सी नहीं?
किसी की मुस्कान का
एक अधूरा हिस्सा भर लेना…
और किसी की उदासी का
एक पूरा हिस्सा
अपने अंदर समा लेना।
वह हँसती रहे,
खिलती रहे,
बस यही दुआ है।
उसकी खुशी उसकी रहे,
पर उसका ग़म…
उसका ग़म मेरा रहे। 🙏


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







