वो कहतें हैं कि अपनों से बेगाने अच्छें हैं
पर ऐसा क्या हुआ कि अपने बेगाने हो गए
और बेगाने अपने लगने लग गए
शायद इसके जिम्मेदार हम खुद हैं
अपने बेगाने लगने लगें क्योंकि हम खुद
बेगाने हो गए
रिश्तों की गर्मजोशी और बागडोर खुद खो
दिए।
दोस्तों यूं कोई अपना बेगाना नहीं होता
जो बेगाना होता है वह कभी भी अपना नहीं हो सकता ।
अरे रिश्तों की चासनी में हीं सब मज़ा है
वरना क्या है अकेले जियो जो कि खुद एक
सज़ा है।
कभी किसी के लिए दिल से सोंचना
फिर रिश्तों की बख्खियां उधेड़ना ।
दूध का धुला कोई नहीं
जब कहता की वही है सही ।
गलतियां इंसान खुद करता है और फ़िर
चोरी कर सीनाज़ोरी भी करता है।
सो कुछ भी नहीं सब सोंच सोंच का फ़ेरा है
संभल गए तो ठीक नहीं तो
रिश्तों में सिर्फ़ झमेला हीं झमेला है।
है वक्त का कड़ा पहरा हम इंसानों पर
ज़रा सी ग़लती हुई कि सब पासे उलट
जातें है ..... तभी..
अपने बेगाने और बेगाने अपने नज़र आतें हैं..
तभी अपने बेगाने और बेगाने अपने नज़र आतें हैं..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




