जब ढलते सूरज की किरण
गोमती की लहरों पर
चुपके से अपना काजल छोड़ जाती है,
तब लखनऊ की शाम
एक नफ़ीस दुपट्टा ओढ़
धीमे क़दमों से
शहर की धड़कनों में उतर आती है।
रूमी दरवाज़े की मेहराबें
जैसे पुरानी दास्तानों का दरपन बनकर
हर मुसाफ़िर को अपने साये में
हल्की सी मुस्कान दे जाती हैं,
मानो कहती हों,
“यह शहर सिर्फ रास्तों का नहीं, रिश्तों का भी है।”
इमामबाड़े की गलियारों में
फुसफुसाहटों की परछाइयाँ
आज भी नवाबी अंदाज़ में झरती हैं,
जैसे किसी शायर ने
दीवारों पर छुपा कर रख दिए हों
उर्दू के अधूरे शेर।
चौक की संकरी गलियों में
इत्र की महक बुनती है
संध्या की नर्म चुप्पी पर
एक मुलायम सा परदा
जिसे हवा हौले से सरकाती है,
और पूरा शहर
एक नज़ाकत-भरी साँस ले उठता है।
टुंडे के धुएँ में
पुरानी लखनऊ की महफिलें
जैसे फिर से ज़िंदा हो जाती हैं
नवाबों की खुशबू, किस्सागोई का शहद,
और तहज़ीब का वो मीठा, धीरे-धीरे बोला गया “अदब”।
गोमती के पुल पर खड़े होकर
जब शाम के रंग
पानी में घुलकर
लाल, सुनहरे और बैंगनी साए बनाते हैं,
तो लगता है
मानो आसमान ने
एक दुपहर की सारी थकान
साँझ की हथेली पर रख
सुकून का वादा कर दिया हो।
और तब
लखनऊ सिर्फ एक शहर नहीं रहता—
वह एक एहसास बन जाता है,
एक मुलाक़ात,
एक दुआ,
एक पुरानी तस्वीर,
जिसे दिल पल भर में
अपना घर मान लेता है।
ऐसी ही होती है
लखनऊ की शाम—
धीमी, गहरी, नफ़ीस,
और रूह को छू लेने वाली—
जैसे कोई पुराना दोस्त
बिना कुछ कहे
पूरी कहानी सुना जाए।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







