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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

लखनऊ की शाम


जब ढलते सूरज की किरण
गोमती की लहरों पर
चुपके से अपना काजल छोड़ जाती है,
तब लखनऊ की शाम
एक नफ़ीस दुपट्टा ओढ़
धीमे क़दमों से
शहर की धड़कनों में उतर आती है।

रूमी दरवाज़े की मेहराबें
जैसे पुरानी दास्तानों का दरपन बनकर
हर मुसाफ़िर को अपने साये में
हल्की सी मुस्कान दे जाती हैं,
मानो कहती हों,
“यह शहर सिर्फ रास्तों का नहीं, रिश्तों का भी है।”

इमामबाड़े की गलियारों में
फुसफुसाहटों की परछाइयाँ
आज भी नवाबी अंदाज़ में झरती हैं,
जैसे किसी शायर ने
दीवारों पर छुपा कर रख दिए हों
उर्दू के अधूरे शेर।

चौक की संकरी गलियों में
इत्र की महक बुनती है
संध्या की नर्म चुप्पी पर
एक मुलायम सा परदा
जिसे हवा हौले से सरकाती है,
और पूरा शहर
एक नज़ाकत-भरी साँस ले उठता है।

टुंडे के धुएँ में
पुरानी लखनऊ की महफिलें
जैसे फिर से ज़िंदा हो जाती हैं
नवाबों की खुशबू, किस्सागोई का शहद,
और तहज़ीब का वो मीठा, धीरे-धीरे बोला गया “अदब”।

गोमती के पुल पर खड़े होकर
जब शाम के रंग
पानी में घुलकर
लाल, सुनहरे और बैंगनी साए बनाते हैं,
तो लगता है
मानो आसमान ने
एक दुपहर की सारी थकान
साँझ की हथेली पर रख
सुकून का वादा कर दिया हो।

और तब
लखनऊ सिर्फ एक शहर नहीं रहता—
वह एक एहसास बन जाता है,
एक मुलाक़ात,
एक दुआ,
एक पुरानी तस्वीर,
जिसे दिल पल भर में
अपना घर मान लेता है।

ऐसी ही होती है
लखनऊ की शाम—
धीमी, गहरी, नफ़ीस,
और रूह को छू लेने वाली—
जैसे कोई पुराना दोस्त
बिना कुछ कहे
पूरी कहानी सुना जाए।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

सुप्रिया साहू said

वाह...फिर तो इस शाम को देखने के लिए लखनऊ जाना पड़ेगा हमें, बहुत खूबसूरत शानदार रचना👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

डॉ अखिलेश श्रीवास्तव replied

बहुत बहुत शुक्रिया 🙏🙏 आपका लखनऊ में स्वागत है , जब भी आएं याद करें

सरिता पाठक said

बहुत खूब 👌🙏

डॉ अखिलेश श्रीवास्तव replied

बहुत बहुत शुक्रिया 🙏🙏

पवन कुमार "क्षितिज" said

वाह..क्या बात है..ऐसाईखा है आपने की हम जैसे जो लखनऊ को खयालों में ही देख पाते है वो आज महसूस करके देख पा रहे है..👌👌👌

डॉ अखिलेश श्रीवास्तव replied

बहुत बहुत शुक्रिया 🙏🙏

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