नाजुक नहीं वह पत्थर भी, चीर दे बहती नदी सी,
पर हर पल झेलती रहती है, चुप्पियों की सदी सी।
हँसी के आँचल में दर्द के धागे बुनती है,
हर रिश्ते को जीती है, पर खुद को कहाँ चुनती है।
घर की दीवारों पर ,उसकी मेहनत की लकीरें हैं,
फिर भी उसे ही परखती रहती, दुनिया की तक़दीरें हैं।
थकान उसकी अक्सर, तकियों में सो जाती है,
पर सुबह वही सपनों को, कंधों पर ढो जाती है।
चेहरे पर मुस्कुराहट, भीतर अनगिनत आस है,
डर, संघर्ष, त्याग—सब रहते उसके पास है ।
पर फिर भी खड़ी रहती है तूफ़ानों से लड़ने को,
अपने ही आँसुओं से ,अपनों का हौसला भरने को।
कभी माँ, कभी बेटी, कभी पत्नी बनकर चलती है,
पर सबसे पहले—वह एक स्त्री है, यही सच्चाई पलती है।
उसकी व्यथा का मान रखो, उसके संकल्प का हार नहीं,
वह टूट भी जाए तो भी , पत्थर सा उसका प्यार नहीं।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







