कभी दिल की धड़कनों में,
मोहब्बत की भाषा बसती थी…
एक आँसू गिर जाए तो,
रूह तक उसकी हलचल महसूस होती थी।
पर अब…
शब्द बचे हैं, अर्थ मर गए,
चेहरों पर हँसी है, जज़्बात कहीं खो गए।
अब दर्द… बस एक दस्तावेज़ है,
जिसे लोग पढ़ते हैं — पर समझते नहीं।
हाथों में मोबाइल हैं,
पर हाथ थामने की फुर्सत नहीं,
बातें हजारों होती हैं,
पर एक भी दिल की नहीं।
कभी हम पूछते थे—
"सब ठीक है ना?"
अब हम बिना सुने मान लेते हैं
कि सब ठीक ही होगा…
रिश्ते तोड़ना आसान हो गया,
पर एक दर्द समझना कठिन।
मन में सन्नाटा पलता है,
आँखों में थकान जलती है,
हम जीते तो हैं…
पर बस साँसों तक सिमटकर रह गए हैं।
ओ इंसान…
तूने दुनिया जीती, सपने जीते, साधन जीते—
पर दौड़ते-दौड़ते
अपनी संवेदनाएँ हार दीं।
कभी ठहर कर देखना—
किसी सूखी आँख के पीछे
बाढ़ भी होती है,
किसी मुस्कान में छिपी होती है
अधूरी चीख,
और किसी चुप्पी में—
एक मौन युद्ध चलता है।
समय अभी बाकी है…
महसूस करना सीख ले,
वरना जिस दिन
तू फिर से महसूस करना चाहेगा—
उस दिन शायद
संवेदनाएँ मर चुकी होंगी।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







