चलो, अब विदा की घड़ी आ गई, बातों की राहें थम-सी गईं,
नज़रें तो अब भी ठहरी हुई, पर पलकों में हल्की नमी आ गई।
तुम्हारे कदमों की आहटों से जो घर धड़कता रहता था,
घर के चौखट पर आज फिर ख़ामोशी की लहर छा गई।
साथ चलने की चाह तो होगी, पर राहें यूँ अलग हो गईं,
तुम में कुछ रह गया हमारा, हम में तुम्हारी छवि कुछ रह गई।
बिछड़ना भी रिश्तों की किस्मत है, पर दिल यह समझ नहीं पाता,
कितना कुछ कहने को रहता है, पर लम्हा क्यूँ बोल न पाता।
यह रुख़सत अंतिम नहीं होगी, हम फिर मिलेंगे— कभी, कहीं,
तुम संभाले रखना बस ख़ुद को, और हम संभालेंगे यादें यहीं।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







