कर उत्तेजना को दफ़न
तू ठंड रख।
क्यों है तू इतना बिफरा पड़ा
तू ठंड रख।
क्यों बात बात पे लड़ रहा
बीन बात के लठ्ठ निकाल रहा
तू ठंड रख।
कभी रोड रेज़ तो कभी
जीवन की रेस में
हर कोई एक दूसरे को
गिरा रहा
आदमी आदमी की हीं
चबा रहा।
ठंड रख भैया तू ठंड
रख।
कभी पद की लड़ाई
तो कभी पोजिशन की
कभी राशन की लड़ाई
तो अभी अभिभाषण की
तू ठंड रख ।
कितनी आग है आदमी में
दूसरों के घर जलाते जलाते
खुद का हीं हाथ जला रहा
तू पढ़ा लिखा है फिरभी पगला रहा
तू ठंड रख।
एक तूफ़ान सा उठ चला है
सबकुछ उड़ा ले गया है
सब लड़ रहें आपस में
कौन समझाए इन अक्ल के अंधों को
ये भीड़ कुछ समझती नहीं
तालिबानी सज़ा मुकर्रर
कर देती कानून को ठेंगा दिखाती
अरे कोई तो इनको समझाए
कि ठंड रख ठंढ
भैया तू ठंड रख...
तू ठंड रख......

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




