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कविता की खुँटी

                    

बच्चे बूढ़े एक समान

Sep 05, 2024 | डायरी | वन्दना सूद  |  👁 645,451

बच्चे बूढ़े एक समान
उम्र का हर पड़ाव
घड़ी के पहर की तरह है
जो घूम घूम कर बार बार जीवन में दस्तक देता है
बच्चे बूढ़े एक समान कहना आसान है
पर दिशा दिखाई जिन्होंने हमें
आज उन्हें क्या दिशा दिखाए,हम
उँगली पकड़ कर जिन्होंने चलना सिखाया
उन्हें किस राह ले जाएँ, हम
जिन्होंने अक्षर अक्षर बोलना सिखाया
आज उनके बोलने पर कैसे रोक लगाएँ,हम
हर साल हमारा जन्मदिन बहुत धूमधाम से मनाया जिन्होंने
उन्हें उनकी उम्र का एहसास कैसे करवा दें आज हम
ज़िन्दगी कभी कभी कितनी कश्मकश में डाल देती है
बच्चे को समझाना ,सिखाना ,पालना जितना आसान है
उतना ही मुश्किल है उनको हम पर विश्वास दिलवाना
कैसे उन्हें समझाएँ
कि उन्हें साथ लेकर चलने की ज़रूरत आज भी है हमें
उनके हक़ को परिवार में न खोने देने की चाहत आज भी है हमें
बेशक आज हमारी कई ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं फिर भी हमारी पहली ज़िम्मेदारी आज भी वहीं हैं ..
वन्दना सूद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

Sanjay Srivastva said

जीवन चक्र का सही बयान 👌

वन्दना सूद replied

🙏🙏😊

Lekhram Yadav said

वाह वन्दना जी आज तो पूरे जीवन चक्र की परिक्रमा करवा कर कमाल कर दिया, बहुत मजा आया जीवन यात्रा करके, आपको धन्यवाद सहित नमस्कार।

वन्दना सूद replied

actually क्या है sir मेरी mother in law मुझे परिक्रमा करवा रहीं हैं तो अपने साथ मैं आप सबको भी करवा रही हूँ ।जब हम स्वयम् किन्हीं पलों का हिस्सा होते हैं तो उन बातों को अच्छे से समझ पाते हैं reality check मिलता है 😊

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Avashya Hi ek ek shabd me Satya basa hua hai, Samaj m Pariwar M, vradhjanon ki jo sthiti aaj bani huyi hai us par dhyan dene ki ati avshyakta hai, aapka aabhar aapne bahut sundar dhang se rachna ke madhyam se is sthiti paristhiti se avgat karwaaya...

वन्दना सूद replied

शुक्रिया 🙏🙏

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