छतों पर धूप बिछी होती, कितने सुनहरे थे वह दिन,
हवा भी खेला करती थी, दिल के ठहरे थे वह दिन ।
काग़ज़ की नावें, पानी की धुन—बारिश की पहली बूंदों में,
भीगकर भी चेहरे मुस्काते, कितने उजियारे थे वह दिन।
गली-गली में पगडंडी पर बचपन दौड़ लगाता था,
सपनों के संग भागी-दौड़ी, कितने न्यारे थे वह दिन।
मिट्टी की ख़ुशबू में मैं था, और मैं ही अपनी दुनिया था,
माँ की गोदी घर की छांव, कितने सहारे थे वह दिन ।
कंचे, गिल्ली, खो-खो खेलें, कितने चंचल खेल थे हमारे,
हवा भी गीत सुनाती थी, मन के दुलारे थे वह दिन ।
अब यादों की पोटली में ही ,बाकी हैं वो मंज़र सब,
वक़्त ने छूकर छीन लिए—पर कितने प्यारे थे वह दिन।
थककर आज भी दिल लौट जाए उस छोटे-से आँगन में,
जहाँ हँसी का झरना बहता , थे वह मेरे तारे वाले दिन ।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







