दिल ने फिर एक ख़्वाब को चुपचाप मरते देखा है,
हार के सन्नाटे में खुद को ही बिखरते देखा है।
भीड़ में भी तन्हाई का बोझ उठाए फिरते हैं,
हमने अपने साये को भी खुद से डरते देखा है।
जीत की चौखट पर जब किस्मत ने मुँह मोड़ लिया,
सब्र को आँखों में आँसू बनकर उतरते देखा है।
हौसलों की आग में जलते रहे ख़ामोशी से,
हर दफ़ा दिल को ही सबसे पहले जलते देखा है।
लफ़्ज़ मुस्काए मगर आँखें रहीं नम हर पल,
दर्द को हमने यूँ भी होंठों से उतरते देखा है।
हार ने सिखला दिया खुद को समझने का हुनर,
टूटकर ही आदमी को फिर सँवरते देखा है।
नाम जब पूछा गया इस बेनिशाँ अफ़साने का,
हार ने कहा अखिल को फौलाद बनते देखा है।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







