रात की चादर तले कुछ ख़ामोशियाँ जागीं,
चाँद ने चुपके से मेरे मन की थकान को सुना।
एक हल्की-सी हवा ने पूछा—
“किसे पुकारते हो तुम इस गहरी नीरवता में?”
मैंने मुस्कराकर कहा—
“उसे… जो दूर है, पर दिल के क़रीब सबसे ज़्यादा।”
तारों ने जैसे अपनी चमक रोक ली,
मानो मेरी अधूरी कहानियों पर पहरा दे रहे हों।
मेरी धड़कनों ने फिर वही पुराना सुर छेड़ा
वो सुर, जो उसका था… सिर्फ़ उसका।
रात एक दर्पण है
जिसमें मैं अपनी ही परछाईं में उसकी परछाईं पाता हूँ।
हर सन्नाटा एक पंखुड़ी-सा गिरता है,
और हर पंखुड़ी उससे मिलने की चाह में महक उठती है।
इस रात को मैं क्या नाम दूँ?
इंतज़ार? याद? प्रेम?
या बस वही पुराना सच—
कि कुछ लोग अँधेरों में भी रोशनी बनकर रहते है
आज फिर रात ने पूछा—
“तेरी एकमात्र चाह क्या है?”
और मैंने धीरे से कहा—
“एक बार… बस एक बार, उसका नाम हवा में सुन पाऊँ।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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