कविता : आज का मोबाइल....
सुबह से ले
कर शाम
कुछ नहीं कर
रहा काम
सौ में से सौ ही
प्रतिशत
मोबाइल की लग गई
मुझे लत
सारा दिन और
सारी रात में
मोबाइल ही है
मेरे हाथ में
मैं मोबाइल
इतना देखता हूं
उसे देख कभी
नहीं थकता हूं
उसी पर
मैं पड़ा हूं
उसी पर
मैं अड़ा हूं
उसी पर
मैं गड़ा हूं
उसी पर
मैं सड़ा हूं
उसी पर
मैं धंसा हूं
उसी पर
मैं फंसा हूं
मोबाइल आज इतनी
प्यारी हो गई है
असल में वो मेरी एक
बीमारी हो गई है
असल में वो मेरी एक
बीमारी हो गई है.......
netra prasad gautam