अनकही पीड़ा
डॉ एच सी विपिन कुमार जैन विख्यात
एक अनकही पीड़ा, अक्सर वो छिपाती है,
अपने भीतर ही अपने, आँसू बहाती है।
जब घर में होती है, कोई छोटी तकरार,
वो चुपचाप सुनती है, दिल में लेती है भार।
अपनी सेहत की उसे, फिक्र कहाँ होती है,
जब घर के कामों में, वो यूँ ही खोती है।
रात में जब सब सोएँ, वो अकेली जगती,
अगले दिन की योजना, मन में कसती।
कभी बच्चों के भविष्य की, चिंता सताती है,
कभी अकेले में बैठ, चुपचाप वो रोती है।
उसकी आवाज़ में भी, कभी थकान नहीं दिखती,
बस हमारी खुशियों की, वो धुन ही बजती।
अपने सपनों को जलाकर, उसने रौशनी दी,
पर खुद के लिए कभी, कोई उम्मीद नहीं ली।
ये अनकही पीड़ा है, जो वो रोज़ सहती है,
पर अपने मुख से कभी, कुछ नहीं कहती है।
वो शक्ति का प्रतीक है, प्रेम की परिभाषा,
उसके संघर्ष में ही, है जीवन की आशा।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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