अब हो ली मुहब्बत, ख़्वाब भी सब देख लिए..
उम्मीद भी नहीं, उनके ज़वाब भी सब देख लिए..।
अब अंधेरों की बस्तियां है काबिज यहां–वहां..
फ़रेबी रोशनियों के, आफ़ताब भी सब देख लिए..।
वो अब बागबां से, खुशबूओं का सौदा करने लगे..
हमने चमन में रोते हुए, गुलाब भी सब देख लिए..।
तेरी उलझने इस तरहा तो, कभी कम न होंगी यारा..
मैने उसकी बही में लिखे, हिसाब भी सब देख लिए..।
ये पहाड़ों से उतरते दरिया–ओ–पत्थर के मंज़र भी..
ख़ौफजदा आंखों में बहते, सैलाब भी सब देख लिए..।
पवन कुमार "क्षितिज"