जातिवाद के नाम पे हमको ,
आखिर कब तक तुम बांटोगे l
नाम नही पर्याप्त क्या मेरा ,
क्यू उपनाम से मुझे बुलाओगे l
एक पिता की सब संताने ,
क्यूं इनको बहकाओगे l
भारत का मैं अटल निवासी ,
कब ये पहचान दिलाओगे l
मेरी संस्कृति मुझसे कहती ,
वेद पुकारे चीख चीख के l
पिता वैद्य पुत्र कवि और ,
माता पीशती अनाज को थी l
समतामूलक परिवार मेरा ,
क्यू मुझसे है दूर किया l
तुछे ओछे स्वार्थ विवश हो ,
जाति में हमको बांट दिया l
पुरुषोत्तम श्री राम शबरी घर ,
या घनश्याम ने जाती देखी थी l
दुर्योधन की सजी थाल तज ,
विदुर गृह साग जो खायी थी l
प्रकृति कहु या कहु नियति ,
जन्म का एक उपाय किया l
निज स्वार्थो के वशिभूत फिर ,
फिर जाति में हमको बांट दिया l
जाति केन्द्रित हमको गिन रहे ,
बताते रहे विकास है कारण l
बांट दिया भाई भाई को ,
बना ये कैसा समाज अकारन l
ये कैसा विश पाश है फ़ेका ,
मिल न सके हम कब के बिछड़े l
कोई बैठा शीर्ष पे जाके ,
कोई रह गये एकदम पिछड़े l
आओ हमको एक मिलाओ ,
जाति का ये भेद मिटाओ l
कालिख मैली को धो आओ ,
संस्कृति पे मत दाग लगाओ l
तेज प्रकाश सतना मध्य प्रदेश ✍️