"ख़ामोश इन निगाहों में शिकवे हज़ार हैं,
ज़ाहिर न कर सके कभी दिल की ज़रुरते ।"
* ज़िंदगी अब तो कुछ करम कर दे,
ज़िंदगी भर ये दिल तरसता रहा।"
"दरमियां फासले हो कितने भी,
हम तुम्हे कैसे भूल सकते हैं।"
"कोशिशों की न पूछ कुछ हम से,
हम मुकद्दर से मात खाते हैं।"
"कोई गुरबत समझ नहीं सकता,
भूख हिम्मत निचोड़ देती है।"
"बात अच्छी है बस अमीरी की,
तुम गरीबी का ज़िक्र मत करना।"
"राहतें ज़िंदगी को मिल जाती,
भूख बेहिस अगर नहीं होती।"
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद