" एक मुलाकात जिंदगी से"
मैंने पूछा जिंदगी से एक दिन,
रोज करती है, मुझे हैरान क्यों?
क्यों परखती है, मुझे तु रात-दिन ।
मेरी दुशियों से, तु परेशान क्यों?
हँस के बोली जिंदगी, पगली है तु,
रहती है उदास सी, हँसती न क्यूँ? परखना तुझको, मेरा इरादा नहीं। हरहाल में खुश रह, कर वादा अभी ।
मैंने कहा जिंदगी झूठी है तु,
उलझनों में बीतता हर पल ये क्यों? दिल में दबी ख्वाहिशें घुटती मेरे,
रूबरू होने का एक मौका तो दे।
अनगिनत भवरें बनाती चल रही,
चाँद सी दिखती कभी सूरज सी तु
रूबरू होकर जूझे जाना है ये,
जैसे अल्लादीन का चिराग तु ।
रचनाकार:- पल्लवी श्रीवास्तव, अरेराज, ममरखा..पूर्वी चम्पारण (बिहार)