जो राह चल रहे थे हम कल तक
उस राह में काँटे ही काँटे
आज फूल किसने बिछा दिए ?
जो प्याला पी रहे थे हम कल तक
उस प्याले में विष ही विष
आज अमृत की बुँदे किसने बरसा दी ?
जिसे चाहा उम्रभर
जिसे पूजा जीवनभर
आज तुम सहज-सुलभ
ऐसी कौनसी घटना घटी ?
मैं तेरा भागी
मैं तेरा ऋणी
हे भगवंत...
मैं कृतकार्य
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️