कापीराइट गजल
लगती है प्यारी-प्यारी, ये मेंहदी तेरे हाथों की
संग ले गई नींद हमारी, ये मेंहदी तेरे हाथों की
ऐसा क्या है इस मेंहदी में, ले गई चैन हमारा
कर गई हमको दीवाना, ये मेंहदी तेरे हाथों की
मैं हूं अन्जान मुसाफ़िर तेरे प्यार की राहों का
गर मैं पा जाता एक स्पर्श ये गोरे-गोरे हाथों की
ये फूल पत्तियां मेंहदी की, छू गई मेरे दिल को
खिल गई है रंगोली सी, ये मेंहदी तेरे हाथों की
अपनी सुध-बुध भूल गए, देख के तेरी मेंहदी
कर गई है खामोश हमें, ये मेंहदी तेरे हाथों की
हम डूबे ख्वाब ख्यालों में सोच के ऐसी मेंहदी
कितनी प्यारी खुशबू है इन मेंहदी वाले हाथों की
छू गया मेरे दिल को, प्यार का ये संगीत नया
कितनी तारीफ करूं मैं इन मेंहदी वाले हाथों की
नजरें इनायत हो जाती हम पे एक बार तुम्हारी
अब छोड़ो ये नादानी, कदर करो जज्बातों की
न जाने कब होगी पूरी, ख्वाहिश ये यादव की
काश छुअन मिल जाती, हमको तेरे हाथों की
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है