कापीराइट गजल
क्यूं चुपके से तुम मुस्कुरा रहे हो
कुछ, तो हम से तुम, छुपा रहे हो
छलक रही है शरारत इन नैनों में
छुपा कर कुछ और दिखा रहे हो
हया होती है गहना हर औरत का
यह, क्या हम से तुम, छुपा रहे हो
कुछ, तो बोलो कुछ, कहो हम से
क्यूं इशारों में हम को बता रहे हो
बहुत हुई दिल्लगी, हमारे दिल से
आज फिर हम को यूं सता रहे हो
यह अन्दाज़ तेरा पसंद है हम को
तुम जैसे यादव को यूं बना रहे हो
- लेखराम यादव
(मौलिक रचना)
सर्वाधिकार अधीन है