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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

कोई गीत गुणगुणा रहा हूँ l

कितने कागज के फुल बिखरे पड़े है राह पर
रंगीबेरंगी
दूर दूर तक कही पेड़ नजर नहीं आते
ना पंछीयोंकी कलकलाहट
गंधहीन
गंधहीन मैं चला जा रहा हूँ
कोई गीत गुणगुणा रहा हूँ l
कितने शव लावारिश रौंध पड़े है रणभूमि पर
अस्तव्यस्त
दूर दूर तक कहीं गिद्ध नजर नहीं आते
ना भूखे भेड़ियोंकी कातिल नजरे
रसहीन
रसहीन मैं चला जा रहा हूँ
कोई गीत गुणगुणा रहा हूँ l
कितने बाजूओंकी ताकत हार चुकी है मृत्युक्षेत्र पर
बेबस
दूर दूर तक कहीं अहंकार की चीख नजर नहीं आती
ना अभिमान की नपुसंक गूंज
जीवहीन
जीवहीन मैं चला जा रहा हूँ
कोई गीत गुणगुणा रहा हूँ l

✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Wow beautiful immense and fantastic. Bahut khoob likha Prabhakar Sir...very deep very meaningful...Pranam Sweekar Karein 🙏🙏

प्रभाकर replied

आपका प्रणाम सदैव स्वीकार है अशोकजी समीक्षा के लिए धन्यवाद प्रणाम बंधू 👏

कमलकांत घिरी said

वाह सर जी बहुत खूब लिखा मजा आ गया पढ़कर 👌👌👏🙏

Suhani Rajput said

Bahut khoob

Bhushan Saahu said

Bahut bdiya.

Krishna Dubey said

Bahut hi manbhavan rachna

प्रभाकर said

Thanks for All 👏

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