हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शीश नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट तेरी शरण में लाऊं।।
माथे पर तू हो चंदन,छाती पे तू हो माला ।
जिह्वा पर गीत हो तू ,तेरा नाम ही गाऊं ।।
जिससे सपूत उपजे , राम कृष्ण जैसे।
उसे धूल को मैं तेरी, शीश पर चढ़ाऊ।।
माई समुद्र जिसकी पद ,रज को धोकर ।
करता प्रणाम तुझको ,मैं चरण दबाऊंगा।।
सेवा में तेरी माता! मैं भेदभाव तजकर।
वह पुण्य नाम तेरा,प्रतिदिन सुनो सुनाऊं।।
आलोक कुमार गुप्ता