परिंदों के पर कतरना अच्छा नहीं है बिल्कुल
अपने वादे से मुकरना सच्चा नहीं है बिल्कुल
अपने आपही उसे खुदसे संभल जाना चाहिए
वो हो गया है बड़ा अब बच्चा नहीं है बिल्कुल
मां की हालत देखकर हैं आंसू नहीं रुकते मेरे
बीमार उसका तन मन अच्छा नहीं है बिल्कुल
दस्तक देकर आख़री घड़ी पता पूछती है मेरा
डरसे बेसुध हमें अपना पता नहीं है बिल्कुल
दास ये बाजार भी बड़ा अजीब है दुनियां का
जो है चाहा वो कभी मिलता नहीं है बिल्कुल II