कविता : शादी मुबारक....
तुम्हारी शादी बहुत
मुबारक तुम को
तुमने शादी में बुलाया
भी नहीं हम को
हम से शादी नहीं किया
चलो ये तो सही है
हमें शादी में निमंत्रण ही न
दिया ये ठीक नहीं है
अगर शादी में बुलाती मेरे
नाम का कार्ड छप जाता
तुम्हारी शादी पर फूलों का
एक गुलदस्ता ले आता
गुलदस्ते के साथ लिफाफे में
तुम को पैसे भी देता
अरे नादान तुम से मैं
थोड़ी न कुछ लेता ?
तुम्हारी शादी में मेरा
दिल जरुर रोता
मगर फायदा
तुम को ही तो होता
वहां पर पंडाल में दो कुल्फी
एक प्लेट खाना ही तो खाता
इस में तुम्हारा घर
कौन सा लीलाम में जाता ?
इस में तुम्हारा घर
कौन सा लीलाम में जाता.......?