भ्रम था गया आया वसंत का भोर।
चिडियों का चहचहाना लगे न शोर।।
वक्त परखकर कुंके कोयल पेड़ पर।
सोनम की याद में मन होता विभोर।।
नजर घुमाकर देखती खेत खलिहान।
सरसों फूली खेत में नाचन लगी मोर।।
ननदें करती मसखरी झूले पेंग बढ़ाय।
गाती गीत मल्हार गाली की बौछार।।
सुनने वाले छुप गए ऐसा मुआ वसंत।
परदेशी टिके नही 'उपदेश' चारो ओर।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद