समझ गई अब मैं इस दुनियां को,
यहाॅं अपनों के अलावा कोई अपना नहीं।
बेदर्दी है सभी यहाॅं,
यहाॅं किसी को किसी की परवाह नहीं।।
कभी-कभी परायों को भी,
अपना बना लेते हैं हम। दगा ऐसा देता है वो कि,
कहीं के भी नहीं रहते हैं हम।।
लगता है इन दुनियां वालों को नफ़रत बहुत है मुझसे, तभी तो हर वक्त दिल मेरा दुःखाते रहते हैं।
पता नहीं क्या खुशी मिलती है इन्हें ऐसा करके,
जो मुझे रुलाते रहते हैं।।
इन्हें काम नहीं अपने काम से,
दूसरों के काम में टांग अड़ाते हैं।
इन्हें अपनी तो बुराइयां भी दिखती नहीं,
और दूसरों की तो अच्छाइयों को भी बुरा बताते हैं।
- रीना कुमारी प्रजापत
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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