रातों में नींद नहीं आती है,
तो जग लेता हूँ
कुछ अपना लिख लेता हूँ
कुछ लोगों को पढ़ लेता हूँ
कभी कभी बस निहारता रहता हूँ
लैपटॉप नामक यन्त्र की स्क्रीन को
तब भी यदि मन शांत नहीं होता है
अन्दर बुल्लू पॉली से बतियाता हूँ
या बाहर डेज़ी को खीरा खिलाता हूँ
माँ पिता भाई भी यूँ तो हैं मेरे
और एक सुन्दर सुशील पत्नी भी है
पर पता नहीं क्यों विचार मिलते नहीं
मनोव्यथा किससे कहें समझ नहीं आता
एक दो मास की बिटिया भी है प्यारी
कभी कभी उसको निहारता रहता हूँ
मुस्काती है कभी कभी सोते सोते
कुछ पल को सब कुछ भूल सा तो जाता हूँ
पर क्षण भर बाद दूर होता हूँ उससे
नवोदिता कुछ समझेगी तब समझेगी
पर उसको अपनी व्यथा अभी क्यों बतलाऊँ
जीवन में व्यथा भी होती है क्यों कर सिखलाऊँ
फिर वापस आता हूँ यन्त्र पर कर खट पट
या नीचे जाता हूँ दौड़ भागकर सरपट
कुछ चाय बना पीकर वक्त व्यतीत करने की कोशिश में
रात निकल ही जाती है खुद को शांत रखने की कोशिश में
इतनी बेचैनी बौखलाहट
आखिर कहाँ से आयी
क्यों बतियाने को कोई
बचा नहीं भाई
----अशोक कुमार पचौरी
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




