कापीराइट
जब किसी को मोहब्बत हो जाती है
उसको हर तरफ लैला नजर आती है
फिरता है वो दिन भर उसकी तलाश में
इसी तरह से रात उसकी गुजर जाती है
खोया रहता है वो उसकी हंसी यादों में
नींद में भी उसे लैला नजर आती है
दुनियां से उसे कोई भी सरोकार नहीं है
कहां इश्क में यह दुनियां नजर आती हो
उसे नजर आता नहीं कोई लैला के सिवा
चांद में भी उस को लैला नजर आती है
मेहरबां उस पर अगर खुदा हो जाए
उसको बाहों में भी लैला नजर आती है
गरीबी में अक्सर प्रेम का होता है यही हाल
पास हो कर भी लैला दूर हो जाती है
ये लैला सभी को मिलती नहीं है यादव
उसको जमाने की नजर लग जाती है
सर्वाधिकार अधीन है