योगी शब्द से कोई योगी नहीं बन जाता
संन्यास लेने से कोई संन्यासी नहीं बन जाता
यह कोई खेल नहीं है गैरो का
बढ़ा ली दाढ़ी-बाल
पहन लिए भगवे वस्त्र
चल दिए गुंफा की तरफ
इतना सरल नहीं है
सभी साधनो की पराकाष्टा ज्ञान है
ज्ञान के बिना यात्रा संभव नहीं
चाहे तुम जंगलो में भटको
चाहे हिमालय की एकांत में अटको
चाहे किसी गुफा में व्यर्थ जिंदगी बिता दो
सब नष्ट हो जाता है
ऐसे न शरीर को कष्ट दो
वह जो साथ है सदियों से,
उसे अनुभव करो
जो बीज बोया है हमने संसार का उस महावृक्ष को उखाड़कर फेंक दो
जो परदा चढ़ा है आँखों पर अज्ञान का उसे जरा हटा दो
हे भगवंत...
तुम नित्यप्राप्त।
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




