अब वक्त–ए–सूरत वो नहीं, मेरे अहबाब वो नहीं..
ख्वाहिशें वो नहीं, नींदों में हुजूम-ए-ख़्वाब वो नहीं..।
तेरे रौशन चेहरे से भी, रातों को कुछ एतराज़ हुआ..
उसको क्या मालूम, उसके दामन में अब महताब वो नहीं..।
बागबां की उदासियों का सबब, बहारों से वाबस्ता था..
मौसम को भी मालूम है, चमन में अब ग़ुलाब वो नहीं..।
कि मुर्दा जिस्मों में ज़ाँ, कब तक फूंकते रहेंगे हम..
अब रहनुमा कोई नहीं, जोशे–ज़ुनुँ–ए–इन्कलाब वो नहीं..।
कोई वक्त में सलीके थे, हमारे हर एक मिजाज़ में..
सीने में धड़कता है दिल मगर, उसके पास धडकनों का हिसाब वो नहीं.
उनकी फुरकत का गम दिल में किस जगह दफ़्न करें हम..
आंखों में जो बहता दिखे है, हकीकत में दर्द का सैलाब वो नहीं..।
हम अब भी उसी शिद्दत से, उनके इंतेज़ार में है यारो..
हमें ये मालूम है, उनकी जुबां ने जो कहा दिल का ज़वाब वो नहीं..।
पवन कुमार "क्षितिज"