©आओ,आओ पर दिल न चुराओ
आओ, आओ पर,
दिल ना चुराओ।
क्या करें,
हमने प्रेम को देखा नहीं,
हम प्रेम के आदी नहीं,
हम नाज़ुक हैं,
घबरा जाते हैं,
प्रेम को देखकर,
डर जाते हैं,
प्रेम से मिलकर,
बिखर जाते हैं,
प्रेम की आहट से,
हर तरफ हम हैं नहीं,
प्रेम में मृत,
प्रेम में जिंदा है नहीं,
प्रेम को संभालना,
बड़ा जटिल है,
बड़ी उलझन है प्रेम के संघर्ष में,
खाली रह जाते हैं हर बार,
प्रेम है इतना अपार,
समक्ष होकर भी,
दर्शक ही रह जाते हैं आशिक हजार,
हमारे सीने में,
रगों में, यादों में, जीवन में, मरण में, अनुभव में,
संघर्ष में, सत्य में, इतनी जगह है ही नहीं,
जो प्रेम को भर सके,
प्रेम चाहते हो तो प्रेम में डूबो,
प्रेम भर भर के कोई नहीं देगा,
प्रेम में रहो मगर खाली रहोगे,
प्रेम में स्वीकार्य है,
प्रेम को स्वीकार नहीं,
इसलिए आओ,
आओ पर दिल न चुराओ।।
- ललित दाधीच