तराज़ू की चोरी
शिवानी जैन एडवोकेट(Byss)
पलड़ा भारी एक तरफ, दूजी ओर है खाली,
न्याय की आँखों पर पट्टी, कैसी यह बेहाली?
हकदारों से छीना गया, उनका न्याय भाग,
ज़ोरों का शासन है यहाँ, निर्बल का क्या लाग?
शब्दों के मकड़जाल में, सच को है उलझाया,
दोषी घूमते आज़ाद, निर्दोष भरें पाया।
कुर्सी की गर्मी में पिघला, ईमान का मोती,
अंधेर नगरी का यह कैसा, चलता है जोती?
कब तक यह धोखा चलेगा, कब तक यह छल होगा?
कब इंसाफ का सूरज चमकेगा, कब यह कल होगा?
उठो, आवाज़ उठाओ, तोड़ो यह बेड़ी,
अन्याय की काली छाया, अब होगी दूर खड़ी।