पहली बूँद जो धरती पर गिरती है,
मिट्टी की खुशबू तब साँसों में भरती है।
सोंधी-सोंधी वो महक जो लहराती है,
जैसे माँ की ममता सिर पर हाथ फेर जाती है।
खेतों की मेंड़, पगडंडी के रास्ते,
बचपन के वो दिन आज भी हैं सजे।
नंगे पाँव दौड़ते थे जहाँ कभी हम,
आज भी उस माटी से है प्रीत जुड़ी।
शहर की भीड़ में सब कुछ पाया,
पर उस मिट्टी का सुकून कभी न आया।
वो धूल भरे खेल, वो सावन की फुहार,
हर खुशबू में बसी है गाँव का प्यार।
जब भी हवा में वो महक सी आती है,
दिल को एक पुरानी याद जगाती है।
मिट्टी की खुशबू बस महक नहीं है,
ये दिल में बसी बचपन की मिठास है।
ये खेतों की लहराती बालियों की हँसी है,
बरगद की छाँव में सुनी कहानी अब भी सजी है।
कच्चे घरों की दीवारों से झाँकती ममता,
वो मिट्टी की खुशबू में अब भी बसी है।