शीर्षक:- सावन
कब आओगे मेरे प्रियतम?
दुल्हन सी सजी है यह धरती,
पवन ने इत्र बिखेरा है।
परदेश गया बादल लौटा,
धरती अंबर को घेरा है।।
मुझे आग लगी मैं बिरहन सी,
अब लख न सकूं इनका संगम।।
कब आओगे मेरे प्रियतम?
उफन रहे हैं नार नदी,
पर्वत पर छाई हरियाली।
सागर नदियां एक हो रहे
धरा हुई है मतवाली।।
धरती अंबर अब एक साथ,
कर रहा मेघ भीषण निनाद।
लगती है डर मुझको हरदम।।
कब आओगे मेरे प्रियतम?
डाली डाली को चूम रही,
क्या हवा चल रही पुरवाई?
है झूम रही डाली डाली,
क्या सावन में मस्ती आई?
छन छन चलती हवा रात-भर,
छेड़ प्यार का सरगम।
कब आओगे मेरे प्रियतम?
कीट पतंगों ने भी मिलकर,
राग प्यार का छेड़ा है।
घुमड़ घुमड़ कर बादल छाए,
दिन में हुआ अंधेरा है।।
इत्र बिखेर रही हैं फ़ुहारें,
बादल चमके चम चम चम।।
कब आओगे मेरे प्रियतम?
है निर्लज्ज बना सावन,
सबके दिल आग लगाया है।
कभी गरजता कभी बरसता,
बिरह को और बढ़ाया है।।
यह असह बिरह,
बिच्छू के डंक सा,
डंक मारता है हरदम।
कब आओगे मेरे प्रियतम?
प्रस्तुतकर्ता कवि:-
पाण्डेय शिवशंकर शास्त्री निकम्मा
मंगतपुर पकरहट सोनभद्र उत्तर प्रदेश।