शिव ही शक्ति शिव ही भक्ति
साम्भ सदाशिव जय शंकर
आनन्दमयी हर हर शंकर
देवों के देव महादेव हैं शंकर
बारह ज्योतिर्लिंग में करते वास
रूपों में एक रूप उनका ‘नटराज’
चार भुजाओं से सुशोभित स्वरूप
सृजन विसर्जन का यह प्रतीक
दाहिने हाथ में एक डमरू
ध्वनि से अपनी मानव मन को मोहित करती
बायीं भुजा में अग्नि तत्व
ब्रह्मांड को नष्ट करने की उनकी शक्ति का एक विकल्प
अगले दाहिने हाथ की’अभय मुद्रा’
बुराई से बचने की देती सीख
अगले बाएँ हाथ और उठे हुए पैर की’नृत्य मुद्रा’
परिवर्तन को दर्शाती और उनकी शरण में आने को प्रेरित है करती
शिव के एक कान में नर कुण्डल और दूजे में नारी कुण्डल
जो अर्धनारीश्वर कहलाता,नर और मादा के संगम को दर्शाता
नटराज के पैरों के नीचे एक दानव
जो अज्ञानता वश अहंकार शून्य हो जाता
शिव के चारों ओर एक सर्प कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक
जो मानव रीढ़ में सुप्त अवस्था में रहता,यदि
कुंडली शक्ति जागृत हो जाए तो सच्ची चेतना प्राप्त हो जाता ..
वन्दना सूद