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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

क्या कहें??

क्या कहें ?
ज़माने की अजब दास्ताँ
आज बच्चे ख़ुश रहने के लिए वजह ढूँढते हैं
बड़े ख़ुश रहने के लिए बच्चों का साथ ढूँढते हैं
भूल उनसे नहीं हमसे ही हो गयी
अहम् की आड़ में घर को बंगला बना दिया
एक आँगन कमरों में बँट गया
परिवार का हर सदस्य एकांत में पहुँच गया
क्या कहें?
आज हमारी राह दिखाए बच्चे परिवार छोड़ एकांत चाहने लगे
बड़े अपने ही परिवार में एकांत से लड़ते नज़र आने लगे
कहीं कोई भूल हमसे ही तो नहीं हो गयी
कि आज संस्कार संस्कारों से ही उलझने लगे??
वन्दना सूद


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

संस्कार संस्कारों से ही उलझने लगी है। वंदना मेम
वर्तमान में परिवार की दशा ही कुछ ऐसी हो गई है। आपकी रचना आज की कड़वी सच्चाई को बयां करती है।

वन्दना सूद replied

जी सही कहा आज की कड़वी सच्चाई

उपदेश कुमार शाक्यावार said

वाह सामाजिक तानाबाना बखूबी चित्रित किया आपको सादर प्रणाम

वन्दना सूद replied

सादर प्रणाम sir 🙏🙏

सुप्रिया साहू said

बहुत खूबसूरत रचना मैम 👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

वन्दना सूद replied

🙏🙏😊

शिवचरण दास said

बहुत मार्मिक. ... यह भूल नहीं हैं अपितु समय का प्रवाह है सबको बहना पड़ता है

वन्दना सूद replied

जी sir नज़रिया है अपना अपना
समय का बहाव कह कर हम अपनी जीवन शैली को सही कैसे कह दें 🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! दिल को झकझोर देने वाली रचना… कितनी सच्चाई से रिश्तों की दरकती दीवार और बदलते संस्कारों का आईना दिखा दिया आपने! 🕯️💔👏

वन्दना सूद replied

🙏🙏

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