नमस्कार,
मैं रवीश नहीं हूँ, पर
आपके भीतर की आवाज़ को जगा रहा हूँ।
कभी-कभी सोचता हूँ,
क्या खबरें अब सिर्फ मनोरंजन के लिए बन रही हैं?
क्या ‘न्यूज़ रूम’ अब ‘रियलिटी शो’ के सेट हैं?
जहाँ देश का बच्चा NEET का पेपर लीक होने पर
रातभर जागता है,
वहाँ मीडिया का कैमरा
किसी सेलेब्रिटी की ब्रेकअप पार्टी कवर करता है।
जहाँ देश का नागरिक
प्लेन क्रैश पर “थ्रस्ट फेल्योर” जैसे शब्द खोजता है,
वहाँ ब्रॉडकास्टर पूछता है —
“प्रियंका चोपड़ा ने आज कौन-सी साड़ी पहनी?”
🪦 क्या ये वही मीडिया है,
जिसने 26/11 की रात
सच के लिए चैन की नींद खो दी थी?
या अब वही मीडिया है
जो Pahalgam के शहीदों की खबर
“कहीं दबे हुए कोनों में” दिखाता है,
क्योंकि “TRP नहीं आएगी”?
सच को अब वॉलपेपर बना दिया गया है।
पीछे की दीवार पर लटका दिया गया है,
और सामने —
शोर, नाटक, और ब्रेकिंग झूठ का पर्दा खड़ा कर दिया गया है।
जब सरकारें जवाबदेही से भागती हैं,
तब पत्रकारों का काम होता है —
सवाल पूछना,
टटोलना,
खामोशी को तोड़ना।
लेकिन आज…
पत्रकार, सरकार की गोद में बैठा है।
न्यूज़ एंकर, प्रवक्ता से तेज़ बोलता है।
और कैमरा…
झूठ को इतना ज़ूम करता है
कि सच पिक्सल में टूट जाता है।
इस लोकतंत्र की रगों में
अगर अभी भी थोड़ा सा भी खून दौड़ता है,
तो अब समय आ गया है —
मीडिया को आईना दिखाने का।
नहीं… कोई पत्थर नहीं चाहिए।
बस एक सवाल काफी है —
“क्या आप पत्रकार हैं?
या प्रमोशनल एजेंट?”
और एक अंतिम बात —
मीडिया जब डर जाए,
तो समझ लीजिए,
देश के जिंदा लोगों को मरा हुआ दिखाना शुरू हो गया है।
अब जनता को ही तय करना है —
क्या आप देख रहे हैं?
या सिर्फ देखे जा रहे हैं?
टीवी पर आज फिर हंगामा है,
सवाल नहीं, बस तमाशा है।
एंकर की आवाज़ में बारूद है,
पर मुद्दा… कहीं दूर, बेहोश पड़ा सूद है।
NEET का पेपर लीक हुआ?
“एक मिनट रुकिए… देखिए ये ब्रेकिंग —
सलमान ने आज नीली पैंट पहनी!”
बचपन की लाश पर
टीआरपी की बर्फ़ जमती रही।
प्लेन गिरा? इंजन फेल?
“उससे पहले ये देखिए —
XXX हीरोइन ने बर्फ़ीली वादियों में शूट किया सॉन्ग!”
ब्लैक बॉक्स को जब हमने खोजा,
माइक ने कहा —
“सर, इधर ध्यान मत दीजिए,
लोकसभा पास ही में है!”
Pahalgam में गोलियाँ चलीं,
लेकिन स्क्रीन पर बस चला —
“कौन बना Koffee with Karan का नया मेहमान?”
देश जलता रहा,
मीडिया गुनगुनाता रहा —
“सिर्फ़ मनोरंजन के लिए…”
पत्रकार अब रिपोर्टर नहीं,
पोस्टर बॉय हैं सत्ता के।
जो लिखे “सरकार महान”,
वो बने राष्ट्रभक्त महान।
बाक़ी सब “Urban Naxal” घोषित हैं।
मीडिया अब आईना नहीं,
सेल्फी कैमरा बन चुका है।
जो तुम देखना चाहते हो, वही दिखाएगा —
बस फ़िल्टर लगा कर,
और साउंड इफेक्ट के साथ।
जनता अगर भूखी है —
तो दोष उस थाली का नहीं,
बल्कि पूछने वाले माइक का है
जो पनीर की रेसिपी दिखा रहा था
जब गैस सिलेंडर 1400 के पार निकला।
तुम सोते रहो,
तो चैनल जागते रहेंगे —
सिर्फ़ तुम्हें मूर्ख बनाए रखने के लिए।
तुम्हारी मौत पर “LIVE” चलाया जाएगा,
स्लो मोशन में, बैकग्राउंड म्यूज़िक के साथ।
तो हे ‘सोशल मीडिया वॉरियर्स’,
Reels में उलझे राष्ट्रप्रेमियों,
Netflix से ज्ञान प्राप्त विद्वानों —
अब भी वक्त है,
“Unfollow Ignorance, Subscribe Truth”
वरना अगला viral video
तुम्हारा हो सकता है।