रोई तन्हा शाम तो सावन की बदली बन गई
एक कंकर जो गिरा सागर में हलचल मच गई।
आंसुओं के मोल का अंदाज उनको क्या भला
छींक ही जिनकी यहां पर खुद कहानी बन गई।
दूर तक फैली हुई है कैसी चांदनी की एक परत
और सपनों की परी ख्वाबों में आकर डस गई।
दास को गुमराह कितना हर किसी ने है किया
कागजी फूलों पे तितली कोई जैसे बस गई ।
आखिरी अंदाज उनका दिल करेगा चकनाचूर
किसके चेहरे की चमक सिंदूर में है रच गई II