कब तक बंधी रहोगी,
परम्पराओं की खूँटी से,
कभी स्वयं काट कर,
उसे भी तो बंधने दो।
ढोती रहोगी कब तक,
जिम्मेदारियों की बोझ,
कभी नीचे उतार कर,
उसे भी तो उठाने दो।
हर रीति-नीति से जुड़ी,
हर रिश्ते को सँवारती,
ये जिम्मेदारी कभी,
उसे भी तो निभाने दो।
अपने अस्तित्व को मिटा,
कितना करोगी समर्पण,
हे! नारी ज़रा ठहरो,
नर को समर्पण करने दो।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




