तुम से अलग होकर आता नही क्रोध।
पंख छोटे लगने लगे तन्हाई का बोध।।
सीमाहीन समुन्दर में गिरना चाहती मैं।
लहरों का प्यार चाहती बनकर अबोध।।
गिरने और उठने में अब अन्तर विहीन।
अकेलापन ना अच्छा ज़माने का प्रबोध।।
सारा अस्तित्व अर्थमय हो या अर्थहीन।
अभिलाषा जिंदा 'उपदेश' कर लो शोध।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद