प्रेम का परम स्वरूप कौन सा प्रेम सच्चा, कौन सा गहरा,
कौन सा प्रेम अमृत, कौन सा सुनहरा?
सिया-राम का प्रेम, जो कर्तव्य में बंधा,
समर्पण की रेखा से चिरंतन ज्यों गढ़ा।
राम की मर्यादा, सिया की तपस्या,
प्रेम बना त्याग, न कोई अपेक्षा।
या वो प्रेम, जो राधा-कृष्ण में बहा,
बिन बंधन के भी, जो जन-जन में रहा।
सांसों में बंसी, ह्रदय में तरंग,
अधरों पर प्रेम का मीठा मलंग।
जो मिला नहीं फिर भी अमर हो गया,
हर धड़कन में बस इक समर हो गया।
या शिव-पार्वती सा, जो तप में पगा,
सृष्टि के आदि का पहला सगा।
एक ने पहाड़ों में वर्षों गुज़ारे,
दूजे ने योग से प्रेम निहारे।
जहाँ प्रेम साधना, समर्पण की जोत,
हर युग में गूँजती अमर प्रेम की ओट।
तो कौन सा प्रेम मिले तो सुकून आए?
जो बंधन से मुक्त हो, जो वक़्त से परे हो।
जो सिया का धैर्य हो, जो राधा का गीत हो,
जो पार्वती का संकल्प हो, जो शिव का मीत हो।
ऐसा प्रेम मिले जो आत्मा छू जाए,
ना पास रहे, ना दूर हो पाए


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







