वाष्पित बन कर दरिया छोड़ चली।
आसमान से मीठा नाता जोड़ चली।।
मिलों दूर बादल बन कर इठलाती।
ख्याली पुलाव से नाता जोड़ चली।।
मालूम है एक दिन वापस लौटेंगी।
जज्बाती बारिश से नाता जोड़ चली।।
फिर आ मिलेगी मेरी रूह से दुबारा।
रिमझिम फुहार से नाता जोड़ चली।।
हमारे रास्ते बेहद टेढ़े मेढ़े 'उपदेश'।
फिर उसी बहाव से नाता जोड़ चली।।
प्रकृति का चक्कर आज भी वही।
वो जीवन चक्र से नाता जोड़ चली।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद