कोई चाहे अगर, कोई मांगे मगर —
ये नींद मिली है या चैन सफ़र।
तेरे बाद जो रातें मिलीं मुझको,
वो जागी रहीं या थीं ख़्वाब भर...
(अंतरा 1)
पहली मोहब्बत में बारिश नहीं थी,
बस आँखों में ठहरा हुआ था ज़हर।
लब चुप रहे, पर दिल हर बार जला,
तेरे नाम पे उठती रही इक कसर।
(अंतरा 2)
नाचा नहीं मैं तेरे गीत की थी ख़बर,
बहुत सुकून होता — मिलता नहीं अगर।
तेरे दर्द में जो तड़प रही हर दफ़ा,
शायद वही थी मिरी आख़िरी असर।
(अंतरा 3)
छुपके रहोगे चुपचाप कितने,
बातों को ना मिले तुम्हारे जिद्दी भंवर।
ये जो लफ्ज़ फंसे हैं सांसों के बीच,
कहीं डूब ना जाएं — कहने से पहले ही मर।
(अंतरा 4)
पकड़ो इसे — ये इक डोर है,
रिश्ता नहीं है — ये नाता कुछ और है।
ना नाम कोई, ना शक्ल कोई,
मगर हर जन्म से पहले भी ये साथ था — और आज भी वहीं ठौर है।
कोई चाहे अगर, कोई मांगे मगर —
ये नींद मिली है या चैन सफ़र...
ये नींद मिली है... या चैन... सफ़र...