कापीराइट गजल
चुरा लेते हैं अक्सर, वो नींद हमारी
उड़ा देते हैं हंस कर वो नींद हमारी
तुम्हारी इस अदा पर फिदा है जमाना
बङी दिलकश है जाना हंसी ये तुम्हारी
करती हैं ये घायल मुझ को बार-बार
अभी तो जिन्दा है ये उम्मीद हमारी
ख्वाब आंखों में लिए फिरते हैं हम
बता रही है मुझे ये खामोशी तुम्हारी
इस कदर मुझे क्यूं करते हो परेशां
डरा रही है मुझे ख्वाहिश ये तुम्हारी
कई बार कहा ऐसे न सताओ यादव
तुम्हारी जां में बस्ती है जान हमारी
- लेखराम यादव
… मौलिक रचना …
सर्वाधिकार अधीन है