प्राणों में अग्नि, मन में उजियारा था,
भारत का वीर सन्यासी न्यारा था।
वाणी में ओज, नयन में गहराई थी,
हर शब्द में शक्ति और सच्चाई थी।
भारत की महिमा को जग के द्वार कहा,
शिकागो में मानवता को प्यार कहा।
धर्म नहीं बंधन है, ये संदेश दिया,
सत्य और सौहार्द्र का उपदेश दिया।
“उठो, जागो”— ऐसा मंत्र सुनाया,
युवकों को खुद का बल याद दिलाया।
कर्म ही पूजा है, ये स्वर गूंज उठा,
संघर्ष हो कितना भी, मन नहीं डिगा।
आत्मबल ही जीवन की असली शान कहा,
भय को मानव का सबसे बड़ा बंधन कहा।
तन पर गेरुआ, भीतर सूरज जैसा प्रकाश,
उनके विचार आज भी देते हैं उल्लास।
जीवन उनका साहस की एक ज्योति है,
विश्वगुरु भारत की अमिट प्रतीति है।
प्रो. स्मिता शंकर, बैंगलोर

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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