ना मन विचलित हो किंचित भी
ऐ मां तू इतना वर दे
जीवन में फैली मेरी मैया दुःख दर्द
सबकी हर ले।
बड़ा अशांत मन हो रहा सबका
सब ओर विध्वंश का सोर है।
लूट काट छीन छिनैती
चल रहा ना किसी का किसी पर
ज़ोर है।
सद्गुण सद्बुद्धि जैसे मां सरस्वती
सबसे रूठीं
सब ओर असभ्य बर्बरता है
सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा
जीवन सबकी अस्त व्यस्त है।
ऐ मां पाप बढ़ रहा धरती पर
सिर्फ़ पापियों की रंज है
अस्तित्व की लड़ाई में पाप पुण्य
में ज़ारी जंग है।
एक बार फ़िर धर्म सद्भावना सामाजिक
सौहार्द स्थापित करने
इस दुनियां में आ जाओ।
पापियों का सर्वनाश करने
खुशियां सबके दामन में भर जाओ।
अनगिनत खुले नर पिचास धूम रहें
जो छोटे छोटे बच्चों बुजुर्गों को भी
नहीं बक्श रहें
दूसरों की तो बात ही क्या करे
अपनों को भी नहीं छोड़ रहें।
ऐसे दरिंदों को जहन्नुम पहुंचने आ जाओ
एक बार अवतरित हो मां
इस दुनियां को संभालने आ जाओ
पापों का सर्व विनाश
दूर सारे क्लेश कर जाओ
सद्बुद्धि सब में भर जाओ
हे मां सद्बुद्धि सब में भर जाओ..
हे मां तुम एक बार तो आ जाओ...
हे मां एक बार तो प्रकट हो जाओ..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




