मैं कर्ण हूँ, ना झुका कभी, ना भागा रण की धार से,
धर्म युद्ध का धर्म छीन लिया, वेदना मिली उपहार से।
सूतपुत्र कह कर ठुकराया, ज्ञान भी मुझसे डरता था,
परशुराम ने शाप दिया, जब सत्य स्वयं लड़खड़ाता था।
धोखे से कवच-कुंडल छीने, दानवृत्ति मेरी खोट बनी,
मैं दीप बना अंधियारों का, फिर भी दुनिया चोट बनी।
दुर्योधन ने साथ निभाया, तब क्षत्रिय कुल ने द्वार बंद किए,
मैं न्याय माँगने गया जहाँ, वहां वंश-वर्ण के ग्रंथ लिखे।
द्रौपदी की सभा में जब अपमान हुआ नारी का,
तब धर्मराज चुप थे, और कृष्ण बना सूत्रधार न्यारी का।
कृष्णा ने मुझसे माँगा जीवन, पर दिया नहीं अर्जुन को भय,
मृत्यु सामने थी फिर भी — मैंने न तोड़ा सत्य का काय।
रण में रथचक्र फँसा धरा में, धर्म कहाँ था उस घड़ी?
जब तीर चलाया अर्जुन ने — वह विजय नहीं, बस छल भरी।
माँ कुंती भी आई अंत समय, लेकर अपना ममतामय धर्म,
पर सुत बनकर मैं बोला — रहूंगा वचनबद्ध, मृत्यु का कर्म।
मैं कर्ण हूँ — ना हार मेरी, ना विजय तुम्हारी है,
जो झुका नहीं वह सूर्यपुत्र, यही कहानी सारी है।
नंद किशोर

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




