आज फिर एक लड़की बनी है दुल्हन
सजाए है उसने कितने ही सपने,सजाया हुआ है आज उसने ये तन।
कितनी खुश है वो कितना खुश है उसका ये मन
हो रही है उसकी शादी बिना दिए ज्यादा धन।
हर कोई उसको दे रहा बधाईयाँ, हर कोई उसकी ले रहा बलाईया
दूल्हे के आज ना जाने ही कितने ठाठ-बाट है
खिलाया जा रहा है खाना पर कितनी लंबी-चौडी ये बारात है।
हाय! कम पड़ गया खाना
बोला दूल्हा हो गई है बेइज्जती, बिना दुल्हन के बारात को होगा वापस ले जाना।
दुल्हन के पिता गिड़गिड़ा रहे
चींख रहे चिल्ला रहे।
जीवन भर की इज्जत और लगा दी है कमाई
ना करो ऐसा वर्ना हो जाएगी हमारी जग हंसाई।
दूल्हा बोला ठीक है इस बात पर दे दो हमे कार
वर्ना मिल रहे हमे बहुत से रिश्ते जो हर तरह से है तैयार।
आई दुल्हन बोली,"क्या यही मिले है तुम्हे माँ-बाप से संस्कार
पापा आप ना गिडगिडाए
माँगकर इन भिखारियो से भीख अपनी इज्जत ना गिराए।
नहीं करनी हमे ऐसी शादी
बन जाएगी ये हमारे जीवन की बर्बादी।
इन दरिंदो से ईश्वर ने हमे बचा लिया
पढ़ी-लिखी आपकी इस बेटी ने समझो नया जीवन पा लिया।
ना दो इन्हे कोई भी दहेज
बेटी को ही अपनी लो आप सहेज,"।
गले लगाकर बेटी को खूब पिता रोया
इन दरिंदो की तुझे भेंट चढ़ाकर बेटी तुझे मैने नहीं खोया।
चली गई वापस बारात बिना साथ लिए दुल्हन
हर किसी के चेहरे पर छाई हुई थी शिकन।
दुल्हन और उसके पिता के चेहरे पर थी मुस्कान
बच गई थी दहेज की बलि चढने से आज एक जान
मिल गया कितने ही लोगो को नया आज एक ज्ञान।
-राशिका